शनिवार, 15 अक्टूबर 2016

पुस्तक समीक्षा : गोदान

प्रेमचंद द्वारा लिखित गोदान भारत के ग्रामीण समाज तथा उसकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करती है...

प्रेमचन्द हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार हैं और उनकी अनेक रचनाओं की गणना कालजयी साहित्य के अन्तर्गत की जाती है। ‘गोदान’ तो उनका सर्वश्रेष्ठ उपन्यास है ही, ‘गबन’, ‘निर्मला’, ‘रंगभूमि’, ‘सेवा सदन’ तथा अनेकों कहानियाँ हिन्दी साहित्य का अमर अंग बन गई हैं। इनके अनुवाद भी भारत की सभी प्रमुख तथा अनेक विदेशी भाषाओं में हुए हैं। इन रचनाओं में उन्होंने जो समस्याएँ उठाईं तथा स्त्री-पुरूषों के चरित्र खींचे, वे आज भी उसी प्रकार सार्थक हैं जैसे वे अपने समय थे और भविष्य में बने रहेंगे। भारतीय समाज के सभी वर्गों का चित्रण बहुत मार्मिक है विशेषकर ग्रामीण किसानों का, जिनके साथ वे एक प्रकार से आत्मसात ही हो गये थे।

‘गोदान’ प्रेमचन्द का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपन्यास है। इसमें ग्रामीण समाज के अतिरिक्त नगरों के समाज और उनकी समस्याओं का उन्होंने बहुत मार्मिक चित्रण किया है।

उपन्यास की कहानी होरीराम , उसकी पत्नी धनिया के इर्द गिर्द घूमती है । प्रेमचंद में इनके माध्यम से तत्कालीन समाज की दशा को बखूबी दर्शाया है जो आज भी सार्थक है।

कहानी के मर्म, भाव के अलावा जो बात इस उपन्यास को बेहतरीन बनती है वो है इसकी भाषा शैली ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

ब्लॉग आर्काइव