शनिवार, 13 अगस्त 2016

राम प्रसाद बिस्मिल

पंडित रामप्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897, तद्नुसार शुक्रवार ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी (निर्जला एकादशी) विक्रमी संवत् 1954 को दत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ था। शिक्षा के दौरान ही इनकी मुलकात आर्य समाज के स्वामी सोमदेव से हुई। उनसे प्रभावित होकर बिस्मिल आर्य समाज के पक्के अनुयायी हो गये। अपने क्रांतिकारी जीवन में ये अंग्रेजों से लुका छिपी का खेल खलते हुए भारतमाता को आजाद कराने के लिए क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देते रहे।

बिस्मिल की एक विशेषता थी कि वे किसी भी स्थान पी अधिक दिनों तक ठहरते न थे। कुछ दिन रामपुर में जागीर में रहकर अपनी सगी बहन शास्त्री देवी के गाँव कोसमा जिला मैनपुरी में भी रहे। उनकी अपनी बहन तक उन्हें पहचान न पायीं कोसमा से चलकर बाह पहुँचे कुछ दिन बाह रहे फिर वहां से पिनहट! आगरा होते हुए ग्वालियर रियासत स्थित अपने दादा के गाँव बरबई (जिला मुरैना मध्यप्रदेश) चले गये और वहाँ किसान के भेष में रहकर कुछ दिनों हल चलाया।

जब अपने घर वाले ही उन्हें न पहचान पाये तो पुलिस की क्या औकात! पलायनावस्था में रहते हुए उन्होंने 1918 में प्रकाशित अँग्रेजी पुस्तक दि ग्रेण्डमदर ऑफ रशियन रिवोल्यूशन का हिन्दी-अनुवाद (in hindi language) इतना अच्छा किया कि उनके सभी साथियों को यही पुस्तक बहुत पसन्द आयी। इस पुस्तक का नाम उन्होंने कैथेराइन रखा था। इतना ही नहीं, बिस्मिल ने सुशीलमाला सीरीज से कुछ पुस्तकें भी प्रकाशित की थीं। जिनमें मन की लहर नामक कविताओं ( desh bhakti kavita/poems) का संग्रह!, कैथेराइन या स्वाधीनता की देवी-कैथेराइन ब्रश्कोवस्की की संक्षिप्त जीवनी, स्वदेशी रंग व उपरोक्त बोल्शेविकों की करतूत नामक उपन्यास प्रमुख थे। सरकारी ऐलान के बाद राम प्रसाद बिस्मिल ने अपने वतन शाहजहाँपुर आकर पहले भारत सिल्क मैनुफैक्चरिंग कम्पनी में मैनेजर के पद पर कुछ दिन नौकरी की उसके बाद सदर बाजार में रेशमी साड़ियों की दुकान खोलकर बनारसीलाल के साथ व्यापरा शुरू कर दिया।
कांग्रेस जिला समिति ने उन्हें ऑडीटर के पद पर वर्किंग कमेटी में ले लिया। सितम्बर 1920 में वे कलकत्ता कांग्रेस में शाहजहांपुर काँग्रेस कमेटी के अधिकृत प्रतिनिधि के रूप में शामिल हुए। कलकत्ता में उनकी भेंट लाला लाजपत राय से हुई। लाल जी ने जब उनकी लिखी हुई पुस्तकें देखीं तो वे उनसे प्रभावित हुए। उन्होंने उनका परिचय कलकत्ता के कुछ प्रकाशकों से करा दिया जिनमें एक उमादत्ता शर्मा भी थे जिन्होंने आगे चलकर सन् 1922 के अहमदाबाद कांग्रेस अधिवेशन में रामप्रसाद 'बिस्मिल' ने पूर्ण स्वराज के प्रस्ताव पर मौलाना हसरत मोहनी का खुलकर समर्थन किया और अन्ततोगत्वा गांधी जी से असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ करने का प्रस्ताव पारित करवा कर ही माने। इस कारण वे युवाओं में काफी लोकप्रिय हो गये।

समूचे देश में असहयोग आन्दोलन शुरू करने में शाहजहाँपुर के स्वयंसेवकों की अहम् भूमिका थी। किन्तु 1922 में जब चौरीचौरा काण्ड के पश्चात् किसी से परामर्श किये बिना गांधीजी ने असहयोग आन्दोलन वापस ले लिया तो 1922 की गया कांग्रेस में बिस्मिल व उनके साथियों ने गांधीजी का ऐसा विरोध किया कि कांग्रेस में फिर दो विचारधारायें बन गयीं- एक उदारवादी या लिबरल और दूसरी विद्रोही या रिबेलियन। भारतवर्ष को ब्रिटिस साम्राज्य से मुक्त करने में यूँ तो असंख्य वीरों ने अपना अमूल्य बलिदान दिया लेकिन राम प्रसाद बिस्मिल बड़े महान क्रान्तिकारी थे, जो बहुत गरीब परिवार में जन्म लेकर और साधारण शिक्षा के बावजूद असाधारण प्रतिभा और अखण्ड पुरूषार्थ के बल पर हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ के नाम से देशव्यापी संगठन खड़ा किया जिसमें एक-से बढ़कर एक तेजस्वी व मनस्वी नवयुवक शामिल थे जो उनके एक इशारे पर इस देश की व्यवस्था में आमूल परिवर्तन कर सकते थे। बिस्मिल की पहली पुस्तक सन् 1916 में छपी थी जिसका नाम था- अमेरिका स्वतन्त्रता का इतिहास। बिस्मिल के जन्म शताब्दी वर्ष 1996-1997 में यह पुस्तक स्वतन्त्र भारत में फिर से प्रकाशित हुई जिसका विमोचन भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था। इस सम्पूर्ण ग्रन्थावली में बिस्मिल की लगभग दो सौ प्रतिबन्धित कविताओं(kavita/poems) के अतिरिक्त पाँच पुस्तकें भी शामिल की गयी थीं।

भारत के अमर शहीदों ने भारत की स्वतंत्रता शौर्य, सम्मान, वैभवशाली भारत का सपना देखा था। वे सपने हमें भी देखना चाहिए।

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