हिन्दू-स्वराज्य के निर्माता, शिवाजी की माताजीजाबाई का जन्म यादव-कुल में , सन् 1597 ई. में, सिंदखेड नामक एक गांव में हुआ था। यह स्थान आजकल महाराष्ट्र के विदर्भ मंडल के अंतर्गत बुलढाणा जिले में आता है। उनके पिता का नाम लघुजी जाधव तथा माता का नाम महालासाबाई था। उनके पिता एक शक्तिशाली सामंत थे।
जीजीबाई का विवाह मालोजी के पुत्र शाहजी भोंसले से हुआ था। शाहजी भोंसले चतुर तथा नीती-कुशल व्यक्ति थे। पहले वे अहमदनगर के सुलतान की सेवा में थे, किन्तु बाद में, जब अहमदनगर पर शाहजहाँ ने अधिकार कर लिया, तब 1636 ई. में उन्होंने बीजापुर में नौकरी कर ली और अपनी नीति-कुशलता के द्वारा वहां पर यथेष्ट यश उपार्जित किया। उनको कर्नाटक में एक विशाल जागीर भी प्राप्त हुई। प्रारंभ में जीजाबाई के पिता लघुजी और श्वसुर मालोजी के परिवारों में घनिष्ठ मित्रता थी, किन्तु बाद में यह मित्रता कटुता में बदल गई।
जीजाबाई धर्मपरायण, पतिपरायण, त्याग और साहसी स्वभाव वाली स्त्री थी। एक बार उनके पिता मुगलों की ओर से लड़ते हुए शाहजी का पीछा कर रहे थे। जीजाबाई उस समय गर्भवती थीं। शाहजी उनको शिवनेरी के दुर्ग में, एक मित्र के संरक्षण में छोड़कर आगे बढ़ गए, शिवनेरी, महाराष्ट्र राज्य के जुन्नर गाँव के पास स्थित एक प्राचीन किला है। इसको अहमदनगर के सुलतान ने जीजाबाई के श्वसुर को जागीर में दिया था। जाधवराव शाहजी का पीछा करते हुए जब उस दुर्ग में पहुंचे, तो वहां शाहजी नहीं मिले किन्तु जीजाबाई मौजूद थी। वह अपने पिता के समक्ष आईं और बड़ी वीरता से कहा- ‘मेरे पति आपके शत्रु हैं, इसलिए मैं भी आपकी दुश्मन हूँ। आपका दामाद तो यहां नहीं, कन्या हाथ लगी है, उसे ही बंदी बना लो और जो उचित समझो, सजा दो।‘ लघुजी ने उनको अपने साथ मायके चलने को कहा, किन्तु जीजाबाई ने अपने पिता की इस बात पर पानी फेरते हुए उत्तर में कहा कि आर्य नारी का धर्म पति के आदेश का पालन करना है। शिवाजी का जन्म इसी शिवनेरी दुर्ग में हुआ था।
जीजाबाई एक तेजस्वी महिला थी, जीवन भर पग-पग पर कठिनाइयों और विपरीत परिस्थितियों को झेलते हुए उन्होंने धैर्य नहीं खोया। उन्होंने श्विाजी को महान वीर योद्धा और स्वतंत्र हिन्दू राष्ट्र का छत्रपति बनाने के लिए अपनी सारी शक्ति, योग्यता और बुद्धमता लगा दी। शिवाजी को बचपन से बहादुरों और शूरवीरों की कहानियां सुनाया करती थीं। गीता और रमायण आदि की कथायें सुनाया करती थीं। गीता और रामायण आदि की कथायें सुनकर उन्होंने शिवाजी के बाल-ह्नदय पर स्वाधीनता की लौ प्रज्जवलित कर दी थी। उनके दिए हुए इन संस्कारों के कारण आगे चलकर वह बालक हिन्दू समाज का संरक्षक एवं गौरव बना। दक्षिण भारत में हिन्दू स्वराज्य की स्थापना की और स्वतन्त्र शासक की तरह अपने नाम का सिक्का चलवाया तथा छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम से ख्याति प्राप्त की।
वीर माता जीजाबाई छत्रपति शिवाजी की माता होने के साथ-साथ उनकी मित्र, मार्गदर्शन और प्रेरणास्त्रोत भी थी। उनका सारा जीवन साहस और त्याग से भरा हुआ था। उन्होंने जीवन भर कठिनाइयों और विपरीत परिस्थितियों को झेलते हुए भी धैर्य नहीं खोया और अपने पुत्र 'शिवा' को संस्कार दिए जिनके कारण वह आगे चलकर हिंदू समाज का संरक्षक 'छत्रपति शिवाजी महाराज'बना। जीजाबाई यादव उच्च कुल में उत्पन्न असाधारण प्रतिभाशाली थी। जीजाबाई जाधव वंश की थी और उनके पिता एक शक्तिशाली सामन्त थे। शिवाजी महाराज के चरित्र पर माता-पिता का बहुत प्रभाव पड़ा। बचपन से ही शिवाजी युग के वातावरण और धटनाओं को भली प्रकार समझने लगे थे। इसलिए माता जीजाबाई की साधना सफल हुई। 'शिवाजी' ने महाराष्ट्र के साथ भारत के बड़े भू-भाग पी स्वराज्य की स्वतंत्र पताका फहराई जिसे देखकर 17 जून 1674 में जीजाबाई शांतिपूर्वक परलोक सिधारीं। जीजाबाई ने ही वीर शिवाजी के ह्नदय में 'स्वराज' का बीजारोपण किया था। जीजाबाई स्वराज्य की देवी थी।
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